प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis)
प्रकाश संश्लेषण क्या है? (Definition of Photosynthesis)
(Photosynthesis Photo = प्रकाश; Synthesis = जुड़ना, निर्माण)
प्रकाश–संश्लेषण पृथ्वी पर होने वाली एकमात्र प्रक्रिया है जिस पर मनुष्य तथा समस्त जीवधारियों का जीवन निर्भर होता है।
इस प्रक्रिया द्वारा हरे पौधे, शैवाल तथा हरित लवक-धारी जीवाणु, अकार्बनिक अणुओं से सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अपना भोजन (कार्बनिक पदार्थ) बनाते हैं।
प्रकाश-संश्लेषण सिर्फ हरे पौधों एवं कुछ जीवाणुओं (साइनोबैक्टीरिया) में घटित होने वाली वह क्रिया है जिसमें पौधों के हरे भाग सौर ऊर्जा को ग्रहण कर वायुमण्डल से ली गई कार्बनडाइऑक्साइड Co2 तथा भूमि से अवशोषित जल (H20) के द्वारा कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करते हैं तथा आक्सीजन गैस (O2) बाहर निकालते हैं।
प्रकाश-संश्लेषण ही एकमात्र ऐसी प्राकृतिक प्रक्रिया है जो वातावरण में ऑक्सीजन छोड़ती है तथा सभी जीवित प्राणी श्वसन हेतु इसी ऑक्सीजन पर निर्भर हैं। हरितलवकों में प्रकाशसंश्लेषण क्रिया सम्पन्न होती है अथवा अन्य शब्दों में हरितलवक सौर-बैटरी की तरह कार्य करके कार्बोहाइड्रेटों का निर्माण करते हैं।
इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन एवं जल सहउत्पाद (byproduct) के रूप में निष्काषित होते हैं। यह क्रिया क्लोरोफिल को उपस्थिति में सम्पन्न होती है।
जोसेफ प्रीस्ट्ले तथा इसके पश्चात् जान इंजेनहॉज ने बताया कि पौधों में वायुमंडल से CO2 को ग्रहण करने एवं वातावरण में ऑक्सीजन छोड़ने की क्षमता है।
इंजेनहॉज ने यह भी बताया कि पौधो द्वारा ऑक्सीजन छोड़ने की प्रक्रिया सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति तथा पौधो के हरे भाग में ही होती हैं।
रॉबर्ट हिल ने प्रदर्शित किया कि यदि पृथक्कृत हरितलवकों को इलेक्ट्रॉन ग्राही की उपस्थिति में प्रतिदीप्त किया जाए तो वह ऑक्सीजन मुक्त करते हैं तथा इलेक्ट्रॉन ग्राही अपचयित हो जाते हैं। इस अभिक्रिया को हिल प्रतिक्रिया कहते हैं। इसके द्वारा जल (प्रकाश अपघटन) को इलेक्ट्रॉन के स्रोत के रूप में प्रयोग करके कार्बन स्थिरीकरण द्वारा ऑक्सीजन एक उपोत्पाद के रूप में मुक्त होती है।
Photosynthesis |
प्रकाश संश्लेषण का रासायनिक समीकरण
CO2 के 6 अणु, पानी (H2O) के 12 अणुओं के साथ सौर ऊर्जा की सहायता से जुड़ जाते हैं| परिणामस्वरूप कlरबोहाइडरेट (C6H12O6) या शर्करा का 1 अणु, सांस लेने लायक ऑक्सीजन और पानी के 6 अणुओं के साथ मिलता है।
इस प्रक्रिया का सबसे प्रमुख घटक क्लोरोफिल है जो हर प्रकार के पौधों में पायी जाती है। इनका मुख्य काम सूर्य की रौशनी को सोखने का होता है। यह हरे रंग की होती है सूर्य के किरणों के लाल और नीले रंगो को सोख लेते हैं। इसका एक बैक्टीरियल संस्करण भी होता है जिसको बक्टेरिओक्लोरोफिल कहते हैं|
प्रकाश-संश्लेषी वर्णक (Photosynthetic Pigments)
1. क्लोरोफिल-a, b, c, d तथा e प्रकार के होते हैं और मुख्य सौर ऊर्जा अवशेषी वर्णक हैं।
2. कैरोटिनॉइड्स अर्थात् कैरोटीन एवं जेन्थोफिल, जिसमें कैरोटीन नारंगी और पीले रंग के होते हैं। हरे पौधों में β-कैरोटीन प्रमुखता से पाया जाता है। जन्तु β-कैरोटीन को विटामिन-A में बदल देते हैं। जैन्थोफिल पौधों के हरे भागों में कैरोटीन के साथ पाए जाते हैं।
कैरोटिनॉइड्स सहायक वर्णक है तथा प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित कर क्लोरोफिल को स्थानान्तरित कर देते हैं।
3. फाइकोबिलिन लाल फाइकोइरिथ्रिन तथा नीला फाइकोसायनिन प्रमुख फाइकोबिलिन है। यह सहायक वर्णक है, जो प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित कर क्लोरोफिल को देते हैं।
प्रकाश-संश्लेषण क्रिया (Photosynthesis Process)
यह क्रिया एक उपचयन-अपचयन (oxidation redution) अभिक्रिया है। इसमें जल का उपचयन ऑक्सीजन के बनने में तथा कार्बन डाइऑक्साइड का अपचयन शर्करा के निर्माण में होता है।
प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया दो अवस्थाओं में होती हैं
1. प्रकाशिक अभिक्रिया 2. अप्रकाशिक अभिक्रिया।
प्रकाशिक अभिक्रिया (Light Reaction)
यह अभिक्रिया प्रकाश की उपस्थिति में हरितलवक के ग्रेना में होती है। इसे हिल अभिक्रिया भी कहते हैं प्रकाशिक अभिक्रिया के सम्बन्ध में रॉबर्ट इमर्सन ने विभिन्न तरंगदैथ्यों के प्रकाश में क्वाण्टम अर्थात् प्रत्येक क्वाण्टम उपलब्धि उपभोग से मुक्त हुए ऑक्सीजन अणुओं की संख्या, ज्ञात की और यह बताया कि 680 nm से अधिक तरंगदैर्ध्य में क्वाण्टम उपलब्धि में कमी आ जाती है। यह कमी दृश्य प्रकाश के लाल क्षेत्र में होने के कारण रेड ड्रॉप कहलाती है। यदि 680 nm से अधिक तरंगदैर्ध्य के साथ लघु तरंगदैर्ध्य भी दे दी जाए तो प्रकाश-संश्लेषण की दर दोनों अलग-अलग तरंगदैर्ध्या में कुल दर की तुलना में बढ़ जाती है। इसे ही इमरसन प्रभाव कहा जाता है।
प्रकाश अभिक्रिया में दो वर्णक तन्त्र भाग लेते हैं, जो क्रमशः वर्णक तन्त्र (pigment system I) तथा वर्णक तन्त्र ।। (pigment system II) कहलाते हैं।
P700 वर्णक तन्त्र I का प्रतिक्रिया केन्द्र है, जिसमें प्रकाश-रासायनिक क्रिया होती है अर्थात् यहाँ से उच्च उर्जा इलेक्ट्रॉन का उत्सर्जन होता है। वर्णक तन्त्र । का उपयोग चक्रीय प्रकाश फॉस्फोरिलेशन तथा अचक्रीय प्रकाश की फॉस्फोरिलेशन दोनों में होता है। वर्णन तन्त्र ।। 600mµ की लघु तरंगदैर्घ्य अवशोषित करता है। इस तन्त्र के प्रमुख वर्णक क्लोरोफिल-b तथा फाइकोबिलिन्स है। इस वर्णक तन्त्र का उपयोग केवल अचक्रीय प्रकाश-फॉस्फोरिलेशन में होता है।
ग्रेना के प्रमुख कार्य क्या होते है ?
1. सूर्य प्रकाश से क्लोरोफिल के इलेक्ट्रॉन उत्तेजित होकर अपनी कक्षा छोड़ देते हैं। जब ये इलेक्ट्रॉन इस ऊर्जा को मुक्त करते हैं तो ADP + P संयुक्त होकर ATP बनाते है इस प्रकार सूर्य का प्रकाश ऊर्जा रसायनिक ऊर्जा में बदल जाती है।
2. उत्तेजित इलेक्ट्रॉनों द्वारा जल का हाइड्रोजन आयन (H+) और हाइड्रॉक्सिल (OH–) आयनों में अपघटन हो जाता है। जल के अपघटन के लिए ऊर्जा प्रकाश द्वारा मिलती है। इस प्रक्रिया के अन्त में ऊर्जा के रूप में ATP तथा NADPH निकलता है, जो अप्रकाशिक क्रिया में मदद करते हैं। इसमें ऑक्सीजन की विमुक्ति जल से होती है न कि Co2 से। इस प्रकार प्रकाशिक क्रिया से (1) ATP बनते हैं (2) NADPH2 बनता है (3) O2 विमुक्त होती है।
अप्रकाशिक अभिक्रिया (Dark Reaction) C3
इस क्रिया में प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है। यह क्लोरोप्लास्ट (हरितलवक) के स्ट्रोमा में होती है। इस अभिक्रिया के लिए ऊर्जा प्रकाश अभिक्रिया से मिलती है। इस अभिक्रिया में प्रकाश अभिक्रिया के क्रम में उत्पन्न NADPH एवं ATP दोनों ही अणुओं का उपयोग कार्बन डाइऑक्साइड से कार्योहाइड्रेट के संश्लेषण के लिए किया जाता है।
मैल्विन कैल्विन एवं बेन्सन ने कैल्विन चक्र (C3 चक्र) की खोज की। इसमें राइबुलोज वाई फॉस्फेट CO2 को ग्रहण कर फॉस्फोग्लिसरिक अम्ल का संश्लेषण होता है। यह प्रथम उत्पाद है।
हैच एवं स्लैक ने एकबीजपत्री पौधों (जैसे-गन्ना, मक्का, साइप्रस आदि) में C4 चक्र की खोज में इसका प्रथम स्थायी उत्पाद 4-C यौगिक ऑक्सेलो एसोटिक अम्ल है। इसमें पर्णमध्योतक कोशिकाएँ तथा पूलाच्छद कोशिकाएँ भाग लेती हैं।
C3 पौधों में प्रकाश-श्वसन उपस्थित होता है, जबकि C4 पौधों में अनुपस्थित होता है।
C3 पादपों में CO2 उपयोग की कम कार्यक्षमता के एक अणु के स्थिरीकरण के लिए 3ATP व 2NADPH23 की आवश्यकता होती है, जबकि C4 पादपों में CO2 उपयोग की अधिक कार्यक्षमता, CO2 के एक अणु के स्थिरीकरण के लिए 5ATP व दो NADPH2 की आवश्यकता होती है।
मांसलोद्भिद् पौधों, जैसे-नागफनी, अजूबा, अगेव, क्लेचू में CO2 स्थिरीकरण रात में होता है इसे CAM (क्रेसुलेसिन एसिड मेटाबॉल्जिम) कहते हैं।
प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक
1. प्रकाश लाल तरंगदैर्ध्य में प्रकाश-संश्लेषण की दर अधिकतम उसके बाद नीला तथा हरे तरंगदैर्ध्य में सबसे कम होती है। इसके अलावा पीली और अवरक्त प्रकाश में यह क्रिया बिल्कुल ही नहीं होती है।
2. CO2 वायुमण्डल में CO2 की मात्रा बढ़ने पर प्रकाश-संश्लेषण की दर बढ़ जाती है।
3. तापमान पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की दर 10°C से 35°C तापमान तक बढ़ती है। इससे अधिक ताप पर एन्जाइम का विकृतिकरण (denaturation) हो जाता है।
4. प्रकाश तीव्रता प्रकाश की निम्न तीव्रता पर प्रकाश-संश्लेषण की दर बढ़ती है और जैसे-जैसे तीव्रता उच्च होती है, यह घटती है।
5. ऑक्सीजन C3 पौधों में विशेषकर अधिक तापमान पर ऑक्सीजन प्रकाश-संश्लेषण के दर को कम करती है।
6. वायुमण्डलीय प्रदूषक SO2, ओजोन, CO आदि प्रकाश-संश्लेषण दर को कम करता है।
7. खनिज लवण Mg, Mn, Fe, N, S, की कमी से प्रकाश-संश्लेषण की दर घटती है।
8. प्रकाश-संश्लेषी उत्पाद प्रकाश-संश्लेषी अन्तिम उत्पाद (मण्ड) के कोशिका में संचय होने से प्रकाश-संश्लेषी दर घट जाती है।