तन्त्रिका तन्त्र क्या हैं?(What is Nervous System)
शरीर रूपी जटिल यन्त्र के विभिन्न यन्त्रों के कार्यों में सामजस्य उत्पन्न करने के लिए शरीर के अन्तर्गत एक विशेष तन्त्र रहता है, जिसे ‘तन्त्रिका तन्त्र’ कहते हैं । यह शरीर का महत्वपूर्ण तन्त्र है, क्योंकि यह शरीर के और सभी तन्त्रों पर नियन्त्रण का कार्य करता है ।
मनुष्य के शरीर में कई स्थान होते हैं, और प्रत्येक संस्थान के अंग मिलकर उस कार्य को पूरा करते हैं । जैसे: मुँह, आमाशय, पक्वाशय, छोटी आँत, बड़ी आँत मिलकर पाचान संस्थान भोजन का पाचन, अभिशोषण, चयापचय का कार्य करता है । इसी तरह अन्य संस्थान भी अपना-अपना कार्य करते हैं।
Human Nervous System |
हमारा तन्त्रिका संस्थान असंख्य तन्त्रिका कोशिकाओं से मिलकर बना होता है । इसकी बनावट अन्य कोशिकाओं की अपेक्षा थोड़ी शिला होती है ।
इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि शरीर वृद्धि के साथसाथ जन्म के समय प्राप्त तन्त्रिका कोशिकाओं का आकार बढ़ता है, जबकि अन्य कोशिकाएँ शरीर में नष्ट होती हैं और नयी बनती हैं, पर तन्त्रिका कोशिका नष्ट हो जाने पर उसके स्थान पर नयी कोशिका नहीं बनती हैं ।
तन्त्रिका कोशिका या न्यूरॉन (Nervous Cell or Neuron):-
तन्त्रिका संस्थान का पूर्ण कार्य तन्त्रिका कोशिकाओं द्वारा ही होता है ।
Neuron |
तन्त्रिका कोशिकाओं के दो मुख्य भाग होते हैं:-
(1) कोशिका पिण्ड:-
यह कोशिका का ऊपरी भाग होता है इसी भाग मे केन्द्रक होता है । कोशिका पिण्ड के भाग से अनेक तन्तु निकलते हैं जिन्हें ‘पार्श्वतन्तु’ (Dendrite) कहते हैं । इनकी पुन: उपशाखाएँ हो जाती हैं । ये शाखाएँ वास्तव में जीवद्रव्य के निचले भाग होते हैं जिनके ऊपर की ओर झिल्ली रहती है नीचे की ओर निकली लम्बी शाखा कोशिका का दूसरा भाग होता है, इसे हम अक्ष तन्तु (Axon) कहते हैं ।
(2) अक्ष तन्तु (Axon):-
यह झिल्ली के नीचे की ओर से निकलती पतले-पतले ब्रुश के समान होते हैं । इन्हें (End Brush) कहते हैं । इन्हीं की सहायता द्वारा तन्त्रिका कोशिका एक चैन के समान जुड़ी रहती है । तन्त्रिका कोशिका भूरे रंग की होती है । तन्त्रिका कोशिका से निकलने वाले तन्तु सफेद रंग के होते हैं, जिन्हें ऊतक भी कहा जाता है ।
तन्त्रिका कोशिका के पार्श्वतन्तु सन्देश ग्रहण करते हैं । यह सन्देश को दूसरी तन्त्रिका कोशिका के पार्श्वतन्तु में पहुँचाते हैं । इस प्रकार न्यूरॉन की चेन द्वारा संदेश मस्तिष्क तक पहुँचाता हैं। दो न्यूरॉन के बीच जो दूरी होती है, उसे साइनैप्स कहते हैं।
युग्मानुबन्ध (Synapsis):-
लगभग 100 अरब वर्ष पूर्व से ही मनुष्य में पृथक् तन्त्रिका कोशिकाएँ होती हैं । प्रत्येक तन्त्रिका कोशिकाओं का अक्ष तन्तु स्वतन्त्र छोर पर अनेक छोटी-छोटी शाखाओं में बँटा होता है जो निकटवर्ती तन्त्रिका के डेन्टाइट्स पर फैला रहता है ।
इन शाखाओं के स्वतन्त्र छोर घुण्डीनुमा होते हैं, इनके और उन रचनाओं के बीच जिन पर ये फैली रहती हैं, प्राय: कोई भौतिक स्पर्श नहीं होता है वरन् दोनों के बीच एक सँकरा तरल से भरा बन्द-सा स्थान बचा रहता है, जिसे सिनैप्टिक विदर (Synaptic Cleft) कहते हैं । इसी सन्धि स्थानों को युग्मानुबन्ध (Synapsis) कहते हैं।
शरीर की अधिकांश तन्त्रिका कोशिकाओं को दो भागों में बाँटा जाता है:-
(1) संवेदी तन्त्रिका कोशिकाएँ (Sensory Nervous Cells)
(2) चालक तन्त्रिका कोशिकाएँ (Motor Nervous Cells)
(1) संवेदी तन्त्रिका कोशिकाएँ (Sensory Nervous Cells):-
सन्देशवाहक में वे तन्त्रिकाएँ होती हैं जो कि बाहरी जगत की उत्तेजनाओं से प्रभावित होती हैं जिसके कारण इनमें संवेदना उत्पन्न होती है । उस संवेदना के कारण प्राप्त सूचना को ये तन्त्रिकाएँ मस्तिष्क व सुषुम्ना में पहुँचाती हैं । हमारे शरीर में सन्देश अंग आँख, नाक और कान होते हैं ।
(2) चालक तन्त्रिका कोशिकाएँ (Motor Nervous Cells)
चालक तन्त्रिकाएँ मुख्यत: मस्तिष्क से प्रेरणाओं को प्रतिक्रियाओं को करने वाली पेशी या अस्थि कोशिकाओं में पहुँचाती हैं चालक तन्त्रिकाएँ आँख, नाक, स्वर यन्त्र व जीभ आदि अंगों में पायी जाती हैं ।
इसके अतिरिक्त एक अन्य प्रकार की तन्त्रिका कोशिकाएँ भी पायी जाती हैं जो ‘मिश्रित तन्त्रिका कोशिकाएँ’ कहलाती हैं । इसके अन्तर्गत संवेदी तथा चालक दोनों प्रकार की तन्त्रिकाएँ पायी जाती हैं ।
इस प्रकार एक ही तन्त्रिका सूत्र दोनों कार्य अर्थात् सूचनाओं को लाने ले जाने का कार्य करता है । ऐसी तन्त्रिकाएँ शरीर में प्राय: आँख, ऊपरी होठ, निचली पलक, दाँतों, कान, जीभ, निचले जबड़े, गर्दन, स्वाद कलिकाओं, स्वर यन्त्र में पायी जाती हैं ।
प्रतिवर्ती क्रियाएँ (Reflex Reactions)
वातावरण के परिवर्तन के प्रति मनुष्य की प्रतिक्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं- ऐच्छिक प्रतिक्रियाएँ व अनैच्छिक प्रतिक्रियाएँ।ऐच्छिक प्रतिक्रियाएँ मानव की चेतना एवं इच्छा के अनुसार सुनियोजित एवं सउद्देश्य होती हैं । अत: इन पर मस्तिष्क का नियन्त्रण होता है जैसे – भोजन करना, भागना, चलना इत्यादि। इसके विपरीत अनैच्छिक प्रतिक्रियाएँ मानव की चेतना शक्ति के अधीन नहीं होती हैं|
अनैच्छिक प्रतिक्रियाएँ भी दो प्रकार की होती हैं – प्रतिक्षेप या प्रतिवर्ती (Reflex) व स्वायत्त (Autonomic) । प्रतिवर्ती क्रियाएँ प्राय: स्पाइनल तन्त्रिकाओं द्वारा सम्यता होती है; जैसे – पकवान देखकर मुँह में पानी आना, आंखों के आगे अचानक किसी वस्तु के आ जाने पर या तेज प्रकाश पड़ने पर पलकों का झपकना इत्यादि । यह सब अनैच्छिक प्रतिवर्ती क्रियाएँ होती हैं|
प्रतिवर्ती क्रिया बहुत जल्दी होती हैं क्योंकि मेरुरज्जु संवेदी सूचनाओं को एक दर्पण की भांति ज्यों-की-त्यों तुरन्त चालक प्रेरणाओं के रूप में लौटा देता है । इसलिए इन्हें प्रतिवर्ती क्रियाएँ कहा जाता है । यह भी दो प्रकार की होती हैं- अबन्धित तथा अनुबन्धित प्रतिवर्ती क्रियाएँ ।
(i) अबन्धित प्रतिवर्ती क्रियाएँ (Unconditional Reflexes)
ये वंशगत प्रतिवर्ती क्रियाएँ होती हैं जिन्हें मनुष्य इच्छा से इनमें परिवर्तन नहीं कर सकता है; जैसे- खानदानी गायक आदि होना|
(ii) अनुबन्धित प्रतिवर्ती क्रियाएँ (Conditional Reflexes)
ये क्रियाएँ प्रशिक्षण द्वारा होने लगती हैं । प्रारम्भ में इन क्रियाओं पर मस्तिष्क का नियन्त्रण होता है, लेकिन बाद में भली- भांति स्थापित हो जाने पर यह आदत बन जाती हैं; जैसे – नाचना, साइकिल चलाना, तैरना, खेलना आदि ।
मस्तिष्क तथा व्यवहार (Brain and Behaviour)
मस्तिष्क हमारे शरीर में मुख्य नियन्त्रक का कार्य करता है । यह तन्त्रिका ऊतकों (Nervous Tissue) का बना एक कोमल एवं खोखला अंग होता है । यह खोपड़ी की कपाल गुहा (Ganial Cavity) में सुरी क्षत बन्द रहता है इसे सहारा देने और बाहरी आघातो दबावों आदि से सुरक्षा करने हेतु तीन झिल्लियों का आवरण होता है ।
बाहर से भीतर की ओर ये निम्नलिखित होती हैं:-
(1) दृढ़तानिका या ड्यूरामेटर (Duramatter)
कपाल गुहा के चारों ओर की अस्थियों पर मढी, मोटी, दृढ़ एवं लोच विहीन, सबसे बाहरी झिल्ली होती है । इसमें कोलैजन तन्तुओं की ज्यादा संख्या पायी जाती है ।
(2) जालतानिका या ऐरेक्नाऐड (Arachnoid)
यह आवरण मध्य में पाया जाता है । इसमें रक्त नलिकाएँ अनुपस्थित होती हैं लेकिन इसमें महीन जाली पायी जाती है इससे तथा दृढ़तानिका के बीच सँकरे खाली स्थान में एक तरल भरा रहता है जो दोनों तानिकाओं को नम बनाकर रखता है ।
(3) मृदुतानिका या पाइमेटर (Piamatter)
यह मस्तिष्क पर चढी हुई सबसे भीतर की ओर तथा कोमल झिल्ली होती है । इसके अनेक महीन कण रक्त नलिकाओ के जाल फैला देता है मस्तिष्क की गुहा में कुछ क्षारीय सा द्रव भरा रहता है यह द्रव मस्तिष्क को सहारा देता है इसे नम बनाये रखता है । इस द्रव को सेरीब्रोस्पाइनल द्रव (Cerebrospinal Fluid) कहते हैं ।
मस्तिष्क की बाहरी संरचना (Outer Structure of Brain)
मानव में सबसे ज्यादा विकसित मस्तिष्क पाया जाता है । इसका आकार भी बहुत बड़ा होता है इसमें अन्य सभी जानवरों के मुकाबले सोचने-समझने की क्षमता पायी जाती है । मस्तिष्क को तीन भागों में बाँटा जाता है ।
प्रमस्तिष्क मेरु-तरल का संगठन (Cerebrum Spinal-Liquid Process)
यह एक तरल पदार्थ होता है जो रंगहीन तथा पारदर्शी होता हैं। इसमें 20-30% प्रोटीन, 50-80% ग्लूकोज, 10-30% ग्राम यूरिया और पोटैशियम, कैल्सियम, सोडियम, फास्फेड, एसिड होता है|
अगर इन सबकी मात्रा बढ़ जाये तो Meningistis रोग हो जाता है जिससे बुखार लगातार रहता है । यह तरल चयापचय की क्रिया को यह नियन्त्रित करता है व मस्तिष्क की रक्षा करता है । यह मस्तिष्क तक ऑक्सीजन और पौष्टिक तत्व पहुँचाता हैं।
मध्यमस्तिष्क (Mid Brain)
यह चार पिण्ड़ों में बंटा हुआ भाग है जो हाइपोथेलेमस तथा पश्चमस्तिष्क के मध्य स्थित होता है। प्रत्येक पिण्ड को कॉर्पोराक्वाड्रीजेमीन(CorporaQuadrigemina)कहा जाता है। ऊपरी दो पिण्ड दृष्टि के लिए तथा निचले दो पिण्ड श्रवण के लिए उत्तरदायी हैं।
पश्चमस्तिष्क (Hind Brain)
यह भाग अनुमस्तिष्क (Cerebellum) , पोंस (Pons) तथा मध्यांश (Medulla Oblongata) को समाहित करता है। अनुमस्तिष्क मस्तिष्क का दूसरा बड़ा भाग है जो एच्छिक पेशियों ( जैसे हाथ व पैर की पेशियाँ ) को नियंत्रित करता है । यह एक विलगित सतह वाला भाग है जो न्यूरोंसरों को अतिरिक्त स्थान प्रदान करता है । पोंसपों मस्तिष्क के विभिन्न भागों को आपस में जोड़ता है । मध्यांश अनैच्छिक क्रियाओं को नियत्रित करता है जैसे हृदय की घड़कन, रक्तदाब, पाचक रसों का स्त्राव आदि | यह मस्तिष्क का अन्तिम भाग है जो मेरूरज्जु से जुड़ा होता हैं।
मेरूरज्जु (Spinal Cord)
मेड्यूला ऑब्लोंगेटा (Medulla Oblongata) का पिछला भाग ही मेरूरज्जु बनाता है इससे 31 जोड़ी तन्त्रिका निकलती हैं। यह प्रतिवर्ती क्रिया (reflex action) का केन्द्र होता है तथा मस्तिष्क एवं मेरू तन्त्रिकाओं (spinal Nerves) के बीच सेतु का कार्य करती है।
सिनेप्स(Synapse)
एक तन्त्रिका तन्तु का एक्सॉन जहाँ दूसरे तन्त्रिका तन्तु डेन्ड्राइट पर समाप्त होता है, उसे सिनेप्स कहते हैं।
सिनैप्स पर एक्सॉन तथा डेन्ड्राइट एक-दूसरे को स्पर्श नहीं करते हैं वरन उस बीच का स्थान पतले द्रव से भरा होता है। एक्सॉन के अन्तिम सिरे पर सिनैप्टिक आशय(Synaptic vesicles) होती है, जिससे न्यूरोट्रान्समीटर, एड्रिनेलिन तथा ऐसीटिलकोलीन निकलते हैं।
सिनैप्स के अन्तर्गत तन्त्रिका आवेग का संचरण एक तन्त्रिका कोशिका से दूसरे में या तन्त्रिका कोशिका से पेशी कोशिका में एसीटिलकोलीन द्वारा होता है।
परिधीय तन्त्रिका तन्त्र (Peripheral Nervous System)
यह मस्तिष्क तथा मेरूरज्जु से निकलने वाली तत्रिकाओं का समूह है जो केन्द्रीय तंत्रिका तन्त्र को जाने व वहाँ से आने वाले संदेशो को पहुँचाने का कार्य
करता है । यह तन्त्र केन्द्रीय तन्त्र के बाहर कार्य करता है अतः इसे परिधीय तन्त्र कहा जाता है । यह मूलतः दो प्रकार का होता है :
( A ) कायिक तंत्रिका तन्त्र ( Somatic Nervous System )
यह तन्त्र उन क्रियाओं को संपादित करने में मदद करता है जो हम अपनी इच्छानुसार करते हैं । केन्द्रीय तन्त्र इस तन्त्र के सहारे ही बाह्य उत्तेजनाओं पर
प्रतिक्रिया तथा मांसपेशियों आदि के कार्य संपादित करवाता है।
यह 12 जोड़ी कपाल तन्त्रिकाओं तथा 31 जोड़ी मेरू तन्त्रिकाओं का बना होता है।
मनुष्य में 31 जोड़ी मेरू तन्त्रिकाएँ निम्न प्रकार से होती हैं।
ग्रीवा – 8 जोड़ी
वक्षीय – 12 जोड़ी
लुम्बर – 5 जोड़ी से क्रल – 5 जोड़ी
कॉक्सीजियल तन्त्रिकाएँ – 1 जोड़ी
(B) स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र (Autonomic Nervous System)
यह तन्त्र उन अंगों की क्रियाओं का संचालन करता है । जो व्यक्ति की इच्छा से नहीं वरन् स्वतः ही कार्य करते है जैसे ह्रदय , फेफड़ा , अन्तः स्त्रावी ग्रन्थियाँ आदि । यह तन्त्र तंत्रिका के समूहों की एक श्रृंखला होती है जिससे शरीर के विभिन्न आन्तरिक अंगो के तंत्रिका तन्तु ( Nerve Fibers ) जुड़े होते हैं । स्वायत तंत्रिका तन्त्र के दो भाग है (i) अनुकम्पी और (ii) परानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र
अनुकम्पी तथा परानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र एक दूसरे के विपरीत कार्य करते हैं तथा शरीर की सभी क्रियाओं पर नियन्त्रण रखते हैं।
(i) अनुकम्पी तंत्रिका तन्त्र (Sympathetic Nervous System)
यह तन्त्र व्यक्ति में सतर्कता तथा उत्तेजना को नियंत्रित करता हैं। यह तन्त्र व्यक्ति के शरीर को आपातकालीन परिस्थिति में अतिरिक्त ऊर्जा प्रदान करता है । आपातकालीन स्थिति में ह्रदय गति का तेज होना , श्वास गति का बढ़ना आदि क्रियाएँ अनुकम्पी तन्त्र के द्वारा ही संपादित की जाती हैं । अनुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र हृदय की धड़कन, आँसू, ग्रन्थियों के स्रावण, एड्रिनल ग्रन्थि के स्रावण, इन्सुलिन के स्रावण को बढ़ाता हैं।
(ii) परानुकम्पी तंत्रिका तन्त्र (Parasympathetic Nervous System)
यह तन्त्र शारीरिक ऊर्जा का संचयन करता है । विश्रामावस्था में यह तन्त्र क्रियाशील होकर ऊर्जा का संचय प्रांरभ करता है । यह आँख की पुतली को सिकोड़ता है तथा लार व पाचक रसों में वृद्धि करता है । परानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र हृदय की धड़कन, आँसू, ग्रन्थियों के स्रावण, एड्रिनल ग्रन्थि के स्रावण, इन्सुलिन के स्रावण को रोकता है।
अनुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र आपातकाल तथा तनाव की स्थितियों में कार्य करता है, जबकि परानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र शान्ति तथा विश्राम की स्थितियों में कार्य करता है।
तंत्रिका तन्त्र की कार्यिकी (Physiology of Nervous System)
कई तंत्रिकाएँ मिलकर कडीनुमा संरचना का निर्माण करती हैं जो शरीर के विभिन्न भागों को मस्तिष्क तथा मेरूरज्जु के साथ जोड़ता है । संवेदी तंत्रिकाएँ बहुत से उदीपनों को जैसे आवाज , रोशनी , स्पर्श आदि पर प्रतिक्रिया करते हुए इन्हें केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र तक पहुँचाती हैं । यह कार्य वैद्यु त रासायनिक आवेग ( Electro Chemical Impulse ) के जरिए संपादित किया जाता है । इसे तंत्रिका आवेग भी कहा जाता है ।
यह तंत्रिका आवेग ही उद्दीपनों को संवेदी अंगों ( त्वचा , जीभ , नाक , आँखे तथा कान ) से केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र तक प्रसारित करते हैं । तंत्रिका आवेग दुमाक्ष्य से तंत्रिकाक्ष तक पहुँचते – पहुँचते कमजोर पड़ जाते है । ऐसे शिथिल आवेगों को सन्धि स्थल पर अधिक शक्तिशाली बनाकर आगे भेजने का कार्य न्यूरोट्रां समीटर द्वारा संपादित होता है । केन्द्रीय तन्त्र से संचारित संकेत जो चालक तंत्रिकाओं द्वारा प्रसारित होते हैं , व मांसपेशियों तथा ग्रन्थियों को सक्रिय करते है ।
तन्त्रिका आवेग का संचरण
यह एक न्यूरॉन (neuron) के एक्सॉन (axon) के अन्त से दूसरे न्यूरॉन के डेन्ड्राइट (dendrite) पर होता है।यह केवल एक ही दिशा में (unidirectional) होता है। यह एक विद्युत रासायनिक प्रक्रिया है। विश्रामावस्था में तन्त्रिका कोशिका के कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) में K+ की सान्द्रता अधिक होती है तथा कोशिका के बाहर Na+ की सान्द्रता अधिक होती है, जिसके कारण कोशिका कला के भीतर -80mV का विद्युत विभव (electrical potential) होता है। यह सुप्त कला अवस्था (polarised state) कहलाती है।
तन्त्रिका कोशिका की कला में विद्युत विभवान्तर (electrical potential difference) होता है, जिसे कला विभव (membrane potential) कहते हैं। न्यूरॉन की प्लाज्मा कला में आयन चैनल (ion channel) उपस्थित होते हैं। ये केवल एक ही प्रकार के आयन के लिए पारगम्य होते हैं; जैसे—Na+ या K+ या Ca2+ आदि।
तन्त्रिका कोशिका में ध्रुवित अवस्था (polarised state) बनाये रखने के लिए कोशिका कला में सोडियम-पोटैशियम पम्प होता है। इसके द्वारा कोशिकाद्रव्य से तीन सोडियम आयन बाहर निकाले जाते हैं तथा बाहर से दो पोटैशियम आयन कोशिकाद्रव्य में प्रवेश करते हैं।
इलेक्ट्रोएन्सिफेलोग्राम (EEG)
पहला EEG बर्गर ने 1929 में अंकित किया था।
EEG मस्तिष्क के विभिन्न भागों की विद्युतीय सक्रियता की रिकॉर्डिंग है।
EEG में चार तरंग होती हैं :
(i) एल्फा तरंगें – ये मस्तिष्क का विश्राम दर्शाती हैं।
(ii) बीटा तरंगें – ये तनाव दर्शाती हैं।
(iil) थीटा तरंगें – ये भावात्मक दवाव; जैसे निराशा के दौरान उभरती हैं।
(iv) डेल्टा तरंगें:- ये सोते समय आती हैं। ये मस्तिष्क की चोट या विकार दर्शाती हैं।
न्यूरोट्रान्समीटर (Neurotransmitter)
न्यूरोट्रांसमीटर एक प्रकार का रासायनिक संदेशवाहक है जो एक रासायनिक सिनैप्स में मौजूद संकेतों को एक न्यूरॉन से दूसरे तक पहुंचाता है। न्यूरोट्रांसमीटर अणु होते हैं जो न्यूरॉन्स से मांसपेशियों तक या विभिन्न न्यूरॉन्स के बीच संकेतों को संचारित करते रहते हैं।
अरबों न्यूरोट्रांसमीटर अणु हमारे दिमाग को काम करने के लिए लगातार काम करते रहते हैं, हमारे सांस लेने से लेकर हमारे दिल की धड़कन तक हमारे सीखने और एकाग्रता को भी न्यूरोट्रांसमीटर व्यवस्थित करता है। न्यूरोट्रांसमीटर विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक कार्यों जैसे भय, मनोदशा और आनंद को भी प्रभावित करते हैं। न्यूरोट्रांसमीटर का कार्य तंत्रिका कोशिकाओं से लक्ष्य कोशिकाओं तक संकेतों को संचारित करना होता है। ये लक्ष्य कोशिकाएं मांसपेशियों, ग्रंथियो या शरीर में मौजूद अन्य नसों में हो सकती हैं।
(A) उत्तेजक (Excitory) न्यूरोट्रान्समीटर – इस प्रकार के न्यूरोट्रांसमीटर का न्यूरॉन पर उत्तेजक प्रभाव पड़ता है, जिसका अर्थ है कि वे पोटेंशिअल को फायर करने की संभावना को बढ़ाते हैं। एपिनेफ्रीन और नॉरपेनेफ्रिन दो उत्तेजक न्यूरोट्रांसमीटर हैं।
उत्तेजक (Excitory) न्यूरोट्रान्समीटर के प्रकार
(i) एसीटिलकोलिन (ii) नॉरएपिनेफ्रिन (iii) सिरोटोनिन (iv) डोपामाइन (v) हिस्टामिन (vi) ग्लुटामेट
(B) अवरोधक (Inhibitory) न्यूरोट्रान्समीटर – इस प्रकार के न्यूरोट्रांसमीटर का न्यूरॉन पर निरोधात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसका अर्थ है कि वे पोटेंशिअल के फायरिंग की संभावना कम होती है।
अवरोधक (Inhibitory) न्यूरोट्रान्समीटर के प्रकार
(i) गामा एमिनो ब्यूट्रीरिक अम्ल (γ-Aminobutyric acid or GABA ) (ii) गलाईसिन
(C) मॉड्यूलर न्यूरोट्रांसमीटर – ये न्यूरोट्रांसमीटर, जिन्हें अक्सर न्यूरोमोड्यूलेटर के रूप में भी जाना जाता है, ये एक ही समय में बड़ी संख्या में न्यूरोट्रांसमीटर को प्रभावित करते हैं। ये अन्य रासायनिक दूतों के प्रभाव को भी प्रभावित करने में सक्षम हैं।
मानव तंत्रिका तंत्र का महत्त्व
तंत्रिका तंत्र हमारे शरीर की गतिविधियों का समन्वय है। यह सब हमारे व्यवहार, सोच और कार्यों को नियंत्रित करता है।
ऐसा केवल तंत्रिका तंत्र के माध्यम से होता है जिससे हमारे शरीर की अन्य सभी प्रणालियां कार्य करती हैं। यह एक आंतरिक प्रणाली से दूसरे को जानकारी भेजती है। उदाहरण के लिए, जब हम मुंह में खाने को रखते हैं, तब इसी वजह से लार ग्रंथियों के द्वारा लार का निर्माण होता है |
जब हमारे शरीर का कोई भी अंग तंत्रिका तंत्र से प्रभावित होता है तो यह विद्युत की तरंगों के रूप में मस्तिष्क को संदेश भेजता है। यह संदेश संवेदी न्यूरॉन्स के माध्यम से भेजा जाता है।
मस्तिष्क संदेश का विश्लेषण करता है और उसके अनुसार कार्य करता है। मस्तिष्क तब मोटर नसों के माध्यम से शरीर संबंधित अंग के लिए निर्देश भेजता है।