बोन मेरो क्या होता है, बोन मेरो ट्रांसप्लांट कब किया जाता है, जानिए इसमें कितना खर्च आता है?
“बोन मेरो हड्डियों के बीच का एक रिक्त स्थान या टनल है जहाँ रक्त का निर्माण होता है. दूसरे शब्दों में,यह ब्लड निर्माण हेतु एक फैक्ट्री जैसा है|”
बोन मेरो ट्रांसप्लांट की आवश्यकता उन बीमारियों की स्थिति में पड़ती है, जिसमें किसी कारणवश ये डिफेक्टिव हो जाता है यानी जब बोन मेरो काम करना बंद कर देता है. बोन मेरो ट्रांसप्लांट के लिए यह अतिआवश्यक है कि रोगी का बोन मेरो डोनर के बोन मेरो से मेल खाता हो. साथ ही, ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन यानी 'एच एल ए' का मैच होना भी आवश्यक है .'एचएलए' के समान होने की संभावना अपने सगे भाई-बहन में 25 फीसदी जबकि माता-पिता में मात्र एक से तीन फीसदी होती है .जब 'एचएलए' शत-प्रतिशत मैच कर जाता है तो डॉक्टर इसके ट्रांसप्लांट की तैयारी शुरू कर देते हैं.
सारे आवश्यक जांच के बाद जिन बच्चों या रोगियों का बोन मेरो डिफेक्टिव होता है, जैसे कि थैलेसीमिया,सिकल सेल एनीमिया,ल्यूकेमिया आदि से पीड़ित रोगियों की स्थिति में , उसे डॉक्टर अपने अस्पताल के बोन मेरो यूनिट में भर्ती करते हैं, फिर सात से दस दिनों तक कीमो के द्वारा रोगी का बोन मेरो नष्ट किया जाता है. ये कीमो आईबी के माध्यम से किया जाता है. फिर, डोनर से लिए गए 350 एमएल बोन मेरो को आईबी के माध्यम से रोगी के शरीर में बल्ड की तरह चढ़ा दिया जाता है. यह प्रक्रिया कोई सर्जरी न होकर, एक आम प्रक्रिया है.
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बोन मेरो ट्रांसप्लांट कब किया जाता है?
बोन मेरो ट्रांसप्लांट यदि कम उम्र में यानी दस-बारह वर्षों तक की उम्र तक कर दिया जाता है तो इसके सफल होने की संभावना काफी अधिक यानी 95 प्रतिशत तक होती है. इन्हीं वजहों से डॉक्टर दो से दस वर्ष तक की उम्र में ही उन बच्चों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट करा लेने की सलाह देते हैं जो थैलेसीमिया,सिकल सेल एनीमिया जैसी बीमारिओं से ग्रसित होते हैं. पर, ल्यूकेमिया या एप्लास्टिक एनीमिया की स्थिति में जैसे ही डॉक्टरों को बीमारी का पता चलता है,वे तत्काल ही बोन मैरो ट्रांसप्लांट की प्रकिया शुरू कर देते हैं.
बोन मेरो ट्रांसप्लांट में कितना खर्च आता है?
बोन मेरो ट्रांसप्लांट का खर्च रोगी किस बीमारी से ग्रस्त है, पर निर्भर करता है. थैलेसीमिया,सिकल सेल एनीमिया आदि से पीड़ित रोगियों की स्थिति में बोन मेरो ट्रांसप्लांट का खर्च दस-बारह लाख तक का आता है. हालांकि, इस ट्रांसप्लांट का खर्च मुख्यमंत्री योजना, प्रधानमंत्री योजना या महात्मा फूली योजना, शिल्पा कल्पतरु जैसे कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं की सहायता से काफी कम हो जाता है ताकि रोगियों के परिवार पर ज्यादा आर्थिक बोझ नहीं पड़ सके.