फ्रेंक कांडन सिद्धांत , आण्विक कक्षकों में संक्रमण
फ्रेंक कांडन सिद्धांत : सिद्धान्त के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण इतनी तीव्र गति से सम्पन्न होते है की नाभिक को अपनी स्थिति में परिवर्तन का समय नहीं मिल पाता है।
अर्थात जो स्थिति इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण से पहले थी वही स्थिति electronic संक्रमण के बाद रहती है इसे फ्रेंक कांडन सिद्धांत कहते है।
यह सिद्धान्त अवशोषण स्पेक्ट्रोस्कोपी का मूलभूत सिद्धांत है जो अवशोषण स्पेक्ट्रम में प्राप्त बैण्डो के आकार एवं उनकी तीव्रता के बारे में जानकारी देता है।
इसके अनुसार संक्रमण में केवल electron ही उत्तेजित होकर उच्च ऊर्जा स्तर में चले जाते है , इस प्रक्रम में नाभिकीय दूरी में कोई परिवर्तन नहीं होता साथ ही अणुओं का वियोजन नहीं होता , इन संक्रमणों को उर्ध्वाधर संक्रमण भी कहते है।
विभिन्न आण्विक कक्षकों में संक्रमण
पराबैंगनी एवं दृश्य क्षेत्र की विद्युत चुम्बकीय विकिरणों के अवशोषण से परमाणुओं या अणुओं के संयोजी कोश में स्थित electron निम्न ऊर्जा स्तर से उच्च उर्जा स्तर में चले जाते है इसे इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण कहते है।
सामान्य निम्न ऊर्जा स्तर = σ , π bonding molecular orbital , non molecular orbital
उच्च उर्जा स्तर = σ* , π* antibonding M.O
कार्बनिक यौगिकों में निम्न 4 प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण संभव होते है –
1. σ to σ* transition
2. n to σ* transition
3. π to π* transition
4. n to π* transition
1. σ to σ* transition : यह संक्रमणउन कार्बनिक यौगिकों में होता है जिनमे single bond उपस्थित होते है।
इन संक्रमणों में सबसे अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
इन संक्रमणों के लिए सामान्यत: λ (अधिकतम) = 170 nm (नैनो मीटर)
जैसे : CH4 में σ to σ* transition 125 नैनो मीटर तरंग दैर्ध्य पर सम्पन्न होता है।
2. n to σ* transition : इस प्रकार का इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण उन कार्बनिक यौगिकों में पाया जाता है जिसमे 1 non bonding एवं σ bonding electron उपस्थित होते है।
जैसे वे यौगिक जिसमे O,S , Cl आदि विषम परमाणु होते है उनमें n to σ* transition होता है।
जैसे : -OH , -SH , -OR आदि , इनके लिए सामान्यत: λ (अधिकतम) का मान लगभग 210 नैनो मीटर होता है।
3. π to π* transition : इस प्रकार का इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण उन कार्बनिक यौगिकों में होता है जिनमें द्विबंध या त्रिबंध उपस्थित होते है।
4. n to π* transition : इस electronic संक्रमण में सबसे कम ऊर्जा की आवश्यकता होती। यह उन कार्बनिक यौगिकों में होता है जिनमें n bonding एवं π bonding इलेक्ट्रॉन होते है।