संधारित्र क्या है :
संधारित्र की परिभाषा
वैसा उपकरण जिसका उपयोग आवेश या ऊर्जा को संग्रहित करने के लिए किया जाता है संधारित्र (capacitor) कहलाता है।
संधारित्र का प्रयोग विभिन्न प्रकार के परिपथ में किया जाता है।
संधारित्र का सिद्धांत (capacitor theory)
माना एक A एक कोई समतल प्लेट है जिस परQ आवेश दिया गया है। इस Q आवेश को देने से प्लेट का विभव भी हो गया है। इस प्लेट A पर अब और अधिक आवेश देने पर प्लेट पर से आवेश विसर्जित (discharge) होने लगेगा अर्थात अब जो अतिरिक्त आवेश देंगे वह अतिरिक्त आवेश उस प्लेट पर नहीं रहेगा।
जब इस प्लेट के नजदीक कोई दूसरा प्लेट B लाया जाता है तो प्रेरण के कारण दूसरे प्लेट के एक ओर ऋण आवेश तथा दूसरी ओर धन आवेश उत्पन्न होता है। ऋण आवेश उस ओर उत्पन्न होता है जिस ओर पहले गोला पर धन आवेश दिया गया है। यह ऋण आवेश पहले गोला के विभव को घटाने का कोशिश करता है जिसके कारण पहले गोला पर और अधिक आवेश देकर उसके विभव को बढ़ाया जा सकता है।
माना q1 आवेश देकर पहले गोले के विभव को और बढ़ा दिया गया। इस प्रकार से हम यह कह सकते हैं कि दूसरे गोले को पहले गोले के नजदीक लाने पर पहले गोली की धारिता बढ़ गई है क्योंकि पहला गोला पर ओर अधिक आवेश q1 दिया जा सकता है।
यहां कोई विद्यार्थी यह सोच सकता है कि दूसरा दूसरा प्लेट B पर दोनों प्रकार के आवेश हैं B पर बायीं ओर ऋण आवेश है जबकि दायीं ओर धन आवेश है।[प्लेट B के बायीं ओर उपस्थित ऋण आवेश प्लेट A के नजदीक है तथा दायीं ओर उपस्थित धन आवेश प्लेट A से दूर है। हालांकि प्लेट B पर उपस्थित धन आवेश और ऋण आवेश दोनों प्लेट A के विभव में परिवर्तन लाएगा (प्लेट B का ऋण आवेश A के विभव को घटाएगा जबकि प्लेट B का धन आवेश प्लेट A के विभव को बढ़ाएगा।
चूंकि प्लेट B का धन आवेश प्लेट A से दूर है इसलिए इसलिए यह प्लेट A के विभव को कम बढ़ाएगा लेकिन प्लेट B का ऋण आवेश प्लेट A के नजदीक है इसलिए यहप्लेट A के विभव को घटाएगा।
इस प्रकार से हम यह कह सकते हैं कि जब किसी प्लेट के सामने दूसरे प्लेट को लाया जाता है तो पहले प्लेट की धारिता अर्थात आवेश ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है क्योंकि दूसरे प्लेट के आने से पहले प्लेट का विभाग घट जाता है। इस घटे हुए विभव को पूर्व के विभव तक बढ़ाने के लिए और आवेश दिया जा सकता है इसलिए हम कहते हैं की इसकी धारिता बढ़ गई है क्योंकि इसमें और अधिक आवेश संग्रहितकरने की क्षमता हो गयी है।
इसके बाद जब प्लेट B के धन आवेश वाले भाग को पृथ्वी के साथ भूसंपर्क किया जाता है तो पृथ्वी में उपस्थित इलेक्ट्रॉन तार द्वारा प्रवाहित होकर प्लेट B के धन आवेश को खत्म कर देता है। धन आवेश के खत्म होने के कारण प्लेट A का विभव और कम हो जाता है। चूंकि प्लेट A का विभव और कम हो गया है। इसलिए अब हम इसे और आवेश देकर इसके विभव को पूर्व के स्तर तक बढ़ा सकते हैं अर्थात यह प्लेट और अधिक आवेश ले सकता है जिसका अर्थ यह है किस की धारिता और अधिक बढ़ गई है।
हम यहां देख रहे हैं कि जब किसी एक प्लेट के सामने दूसरे प्लेट को लाया जाता है तो पहले प्लेट की धारिता में वृद्धि होती है। यही संधारित्र के कार्य करने का सिद्धांत है। हम इसे इस रूप में भी कह सकते हैं कि संधारित्र में दूसरा प्लेट संधारित्र की धारिता को बढ़ाने में मदद करता है।
संधारित्र के प्रकार (types of capacitor)
संधारित्र का सिद्धांत सभी प्रकार के संधारित्र के लिए समान होता है लेकिन संधारित्र में प्रयोग होने वाले प्लेट के आधार पर संधारित्र को तीन भागों में बांटा जाता है। संधारित्र के तीन प्रकार निम्नलिखित है –
1. समांतर प्लेट संधारित्र 2. गोलीय प्लेट संधारित्र 3. बेलनाकार प्लेट संधारित्र
1. समांतर प्लेट संधारित्र (parallel plate capacitor) – जब दो समतल एवं समांतर प्लेट एक दूसरे से कुछ दूरी पर रखा जाता हैं तो इस प्रकार से बनने वाला संधारित्र समांतर प्लेट संधारित्र कहलाता है।
समांतर प्लेट संधारित्र में दो प्लेट एक दूसरे के समांतर होता है तथा दोनों प्लेट एक समतल सतह होता है जिस पर विपरीत आवेश रहते हैं और यह समतल सतह एक दूसरे से कुछ दूरी पर स्थित होते हैं।
2. गोलीय प्लेट संधारित्र या गोलाकार प्लेट संधारित्र (spherical plate capacitor) – जब दो सकेंद्रीय गोलीय सतह को एक दूसरे से कुछ दूरी पर रख दिया जाता है तो इस प्रकार से प्राप्त होने वाला संधारित्र गोलियां प्लेट संधारित्र कहलाता है।
गोलियों प्लेट संधारित्र में दो सकेंद्रीय गोला होता है जिसमें एक गोला की त्रिज्या दूसरे गोला से अधिक होती है और दोनों मिलकर संधारित्र का निर्माण करते हैं।
3. बेलनाकार प्लेट संधारित्र (cylindrical plate capacitor) – जब बेलन की आकार के दो सतह को एक दूसरे से कुछ दूरी पर रखा जाता है तो बनने वाला संधारित्र बेलनाकार प्लेट संधारित्र कहलाता है।
बेलनाकार प्लेट संधारित्र में सतह बेलनाकार होता है।
समांतर प्लेट संधारित्र की धारिता का व्यंजक (Expression for capacitance of parallel plate capacitor)
माना X तथा Y दो समांतर प्लेट है जो एक दूसरे से d दूरी पर स्थित है। पहले प्लेट पर +Q आवेश तथा दूसरे प्लेट पर – Q आवेश है और दोनों प्लेटों का क्षेत्रफल A है इस प्रकार से यह समांतर प्लेट संधारित्र का निर्माण कर रहा है।
माना प्लेटों के बीच कोई बिंदु P है जहां पर हम को विद्युत क्षेत्र तीव्रता का मान ज्ञात करना चाहते है। हम पहले से जानते हैं कि अनंत आकार के समतल चादर के कारण विद्युत क्षेत्र की तीव्रता σ/2ε0 होता है चुकी बिंदु P दो प्लेट X तथा Y के बीच है इसलिए बिंदु P पर प्लेट X और प्लेट Y दोनों के कारण विद्युत क्षेत्र उत्पन्न होगा।
बिंदु P पर उत्पन्न कुल विद्युत क्षेत्र = σ/2ε0 + σ/2ε0
= 2 σ/2ε0
= σ/ε0
जैसा कि हम जानते है कि विभवान्तर (V) = E × d होता है
इसीलिए प्लेटों के बीच का विभवांतर (V) = σ/ε0 × d
= Q×d/A×ε0
समांतर प्लेट संधारित्र की धारिता (C) = Q/V
= Q/Q×d/A×ε0
= A×ε0/d
C = ε0 A/d
यदि प्लेटों के बीच K परावैद्युत स्थिरांक वाला माध्यम भरा हो तो इस स्थिति में समांतर प्लेट संधारित्र की धारिता Cm = K ε0 A/d
Cm = K C0
अर्थात K परावैद्युत स्थिरांक वाले माध्यम में समांतर प्लेट संधारित्र की धारिता हवा या निर्वात में इसके धारिता का K गुना होता है.
इसका अर्थ यह है कि यदि हवा या निर्वात में किसी समांतर प्लेट संधारित्र की धारिता 4 μF है और प्लेटों के बीच यदि अल्कोहल (परावैद्युत स्थिरांक = 25 ) भर दिया जाए तो इसकी धारिता 25 × 4 μF हो जाता है.
समांतर प्लेट संधारित्र की धारिता को प्रभावित करने वाले कारक –
1. प्लेटों के बीच का माध्यम – समांतर प्लेट संधारित्र की धारिता प्लेटों की बीच के माध्यम के परावैद्युतता के समानुपाती होता है. जब माध्यम का परावैद्युत स्थिरांक अधिक होता है तो धारिता बढ़ती है तथा जब माध्यम का परावैद्युत स्थिरांक कम होता है तो संधारित की धारिता कम होती है।
गणितीय रूप में C ∝ ε
2. प्लेट का क्षेत्रफल – समांतर प्लेट संधारित्र की धारिता प्लेट के क्षेत्रफल का सीधा समानुपाती होता है अर्थात प्लेट का क्षेत्रफल बढ़ने से समांतर प्लेट संधारित्र की धारिता बढ़ती है एवं प्लेट का क्षेत्रफल घटने से समांतर प्लेट संधारित्र की धारिता घटती है।
गणितीय रूप में C ∝ A
3. प्लेटों के बीच की दूरी – समांतर प्लेट संधारित्र की धारिता प्लेटों के बीच की दूरी का व्युत्क्रम अनुपात ही होता है अर्थात प्लेटों के बीच की दूरी बढ़ने से समांतर प्लेट संधारित्र की धारिता घटती है तथा प्लेटों के बीच की दूरी घटने से समांतर प्लेट संधारित्र की धारिता बढ़ती है।
गणितीय रूप में C ∝ d
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