द्रव्यमान संरक्षण का नियम(Law of conservation of mass)
एक मोमबत्ती लें और उसे एक बंद कमरे में ले जाकर जलाएँ। थोड़ी ही देर में हम देखते हैं कि मोम पिघल कर गायब हो रहा है। पर क्या वह वास्तविक रूप से गायब हो रहा है?
जब मोमबत्ती जलती है, तब उसका मोम ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया कर पानी (H2O) तथा कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) बनाता है। तो यदि हम मोम और ऑक्सीजन का कुल वज़न लें ,तो वह H2O और CO2 के कुल वज़न के बराबर होगा।
यानी मोम कहीं गायब नहीं हुआ है। वह जितना था, उतना ही है।
द्रव्यमान के संरक्षण का सिद्धांत (Law of conservation of mass)
यह सिद्धांत कहता है कि किसी भी बंद व्यवस्था (क्लोज्ड सिस्टम) में द्रव्यमान (mass) सदा ही संरक्षित रहता है। वह ना तो बढ़ता है और ना ही घटता है।
द्रव्यमान का ना ही सृजन हो सकता है तथा ना इसे नष्ट किया जा सकता है। परंतु वह आपस मे पुनर्व्यवस्थित अवश्य हो सकता है।
किसी भी रासायनिक प्रतिक्रिया में सारे अणु तथा परमाणुओं का वज़न प्रतिक्रिया के पूर्व तथा पश्चात समान ही रहता है।
परमाणु केवल पुनर्व्यवस्थित होते हैं। वे कहीं विलुप्त नहीं होते। और ना ही अपने आप पैदा हो जाते हैं।
रसायन विज्ञान में द्रव्यमान संरक्षण सिद्धांत की महत्ता (Importance of law of conservation in chemistry)
इस सिद्धांत के कारण ही आज रसायन विज्ञान इन ऊंचाइयों तक पहुँच पाया है तथा इतना विश्वसनीय भी है। यदि किसी तत्व का 1 मोल प्रयोग किया जा रहा है, तो प्रतिक्रिया होनेके बाद भी वह 1 मोल ही रहेगा।
इससे वैज्ञानिक अनुमान लगा सकते हैं कि प्रतिक्रिया के पश्चात कितने उत्पाद (products) बनेंगे। इसी प्रकार किसी प्रतिक्रिया की दक्षता में वृद्धि लाने के लिए भी इस सिद्धान्त का प्रयोग किया जा सकता है।
द्रव्यमान संरक्षण का नियम किसने दिया था? (who gave law of conservation of mass)
अन्टोइनै लावोइसिर का मानना था कि समस्त ब्रह्मांड का द्रव्य (matter) हमेशा स्थिर (constant) रहता है। समय के साथ इसमे परिवर्तन आए और कहा गया कि बंद व्यवस्था में द्रव्यमान संरक्षित रहता है।
किन्तु ये दोनो ही कथन मात्र क्लासिकल मैकेनिक्स का समर्थन करते हैं। अल्बर्ट आइंस्टीन ने तब एक नया सिद्धांत सबके समक्ष रखा, जो क्वांटम मैकेनिक्स, तथा सामान्य सापेक्षता (जनरल रिलेटिविटी) दोनो से सहमति दर्शाता है।
द्रव्यमान ऊर्जा संरक्षण (Mass-Energy conservation)
आइंस्टीन का सबसे प्रसिद्ध समीकरण E = mc^2 बताता है कि द्रव्यमान तथा ऊर्जा एक दूसरे में बदले जाने के योग्य हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि द्रव्यमान तथा ऊर्जा मिलकर संरक्षित रहते हैं, केवल द्रव्यमान नहीं।
द्रव्यमान ऊर्जा में परिवर्तित हो सकता है। परंतु यह तथ्य तभी महत्वपूर्ण है जब हम रेडियोधर्मी प्रतिक्रियाओं (radioactive reactions) के साथ काम कर रहे हों।
अन्य प्रतिक्रियाएँ जैसे रसायनिक प्रतिक्रियाओं में भी द्रव्यमान ऊर्जा में परिवतिर्त हो व्यवस्था से बाहर चला जाता है। पर उस कारण द्रव्यमान (mass) में ना के बराबर परिवर्तन आता है और इसलिए हम उसे नज़रअंदाज़ करते हैं।
हालांकि रेडियोधर्मी प्रतिक्रियाओं में ऊर्जा की मात्रा अत्यंत विशाल होती है और इसीलिए इस कारण होने वाली द्रव्यमान में कमी या वृद्धि को भी गणना में सम्मिलित किया जाता है।