ऊष्मागतिकी के नियम
Laws of thermodynamics
ऊष्मा का स्थानांतरण तीन विधियों से होता है चालन, संवहन और विकिरण। पहली दो विधियों में द्रव्यात्मक माध्यम की आवश्यकता है, किंतु विकिरण की विधि में विद्युच्चुंबकीय तरंगों द्वारा ऊष्मा का अंतरण होता है।
ऊष्मा की एक उपशाखा अणुगति सिद्धांत (Kinetic Theory) है। इस सिद्धांत के अनुसार द्रव्यमात्र लघु अणुओं के द्वारा निर्मित हैं। गैसों के संबंध में यह बहुत महत्वपूर्ण विज्ञान है और इसके उपयोग का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। विशेष रूप से इंजीनियरिंग तथा शिल्पविज्ञान में इसका बहुत महत्व है।
ऊष्मागतिकी का अधिक भाग तीन नियमों पर आधारित है।
ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम
First Law Of Thermodynamics
ऊर्जा संरक्षण नियम का ही दूसरा रूप है। इसके अनुसार ऊष्मा भी ऊर्जा का ही रूप है। अत: इसका रूपांतरण तो हो सकता है, किंतु उसकी मात्रा में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। जूल इत्यादि ने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया कि इन दो प्रकार की ऊर्जाओं में रूपांतरण में एक कैलोरी ऊष्मा 4.18 व 107 अर्ग यांत्रिक ऊर्जा के तुल्य होती है इंजीनियरों का मुख्य उद्देश्य ऊष्मा का यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतर करके इंजन चलाना होता है। प्रथम नियम यह तो बताता है कि दोनों प्रकार की ऊर्जाएँ वास्तव में अभिन्न हैं, किंतु यह नहीं बताता कि एक का दूसरे में परिवर्तन किया जा सकता है अथवा नहीं। यदि बिना रोक-टोक ऊष्मा का यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तन संभव हो सकता, तो हम समुद्र से ऊष्मा लेकर जहाज चला सकते। कोयले का व्यय न होता तथा बर्फ भी साथ साथ मिलती। अनुभव से यह सिद्ध है कि ऐसा नहीं हो सकता है।
जूल के नियमानुसार ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम ऊर्जा संरक्षण का नियम ही है। W=JHA निकाय को दी गई ऊष्मा संपूर्ण रूप से कार्य में परिवर्तित नहीं होता। इसका कुछ भाग आंतरिक ऊर्जा वृद्धि में व्यय होता है एवं बाकी कार्य में बदलता है अत: प्रथम नियम इस प्रकार होगा
∆Q=∆U+∆W
∆Q निकाय को दी गई ऊष्मा, ∆U निकाय के आंतरिक ऊर्जा में वृद्धि, एवं ∆W निकाय द्वारा किया गया कार्य है।
यदि निकाय ∆Q ऊष्मा लेती है तो धनात्मक और यदि ∆Q ऊर्जा निकाय द्वारा दी जाती है तो ऋणात्मक होती है। यदि निकाय द्वारा ∆W कार्य किया जाता है तो कार्य धनात्मक, यदि निकाय आयतन पर गैस के ताप को 10c बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा एवं स्थिर दाब पर गैस के ताप को 10c बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा में अंतर रहता है। इस प्रकार गैस की दो विशिष्ट ऊष्माएं होती हैं।
स्थिर आयतन पर गैस की विशिष्ट ऊष्मा (Cu)- स्थिर आयतन पर गैस के इकाई द्रव्यमान का ताप 10c बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा केा स्थिर आयतन पर गैस की विशिष्ट ऊष्मा कहते है एवं इसे से Cu प्रदर्शित करते है।स्थिर दाब पर गैस की विशिष्ट ऊष्मा (Cp) – स्थिर दाब पर गैस के इकाई द्रव्यमान का ताप 10c बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा की मात्रा को स्थिर दाब पर गैस की विशिष्ट ऊष्मा कहते हैं। इसे Cp से प्रदर्शित करते हैं।Cp, Cu से बडा़ होता है – जब स्थिर आयतन पर किसी गैस को ऊष्मा दी जाती है तो सम्पूर्ण ऊष्मा उसके ताप बढ़ाने में व्यय होती है। परन्तु जब स्थिर दाब पर किसी गैस को ऊष्मा दी जाती तो उसका कुछ भाग आयतन बढ़ाने में व्यय होता है एवं बाकी भाग उसके ताप वृद्धि में व्यय होता है। अत: Cp, Cu से बडा़ होता है।
अत: Cp – Cu = R यह मेयर का संबंध है। यहां R सार्वत्रिक गैस नियतांक है।
ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम की सीमाएं
Limitations Of The First Law Of Thermodynamics
ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम ऊष्मा एवं अन्य प्रकार की ऊर्जा की तुल्यता पर जोर देता है। इस तुल्यता के आधार पर ही हमारी आपकी गतिविधियां संभव है। विद्युत ऊर्जा जिससे हमारे घरों में प्रकाश होता है, मशीनें काम करती हैं, रेलगाड़ियां चलती है उस ऊष्मा से प्राप्त होती है जो कि जैवाश्म ईंधन या नाभिकीय ईंधन को जलाने से प्राप्त होती है। एक दृष्टि से यह नियम सार्वभौमिक है। यह ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान की गिरावट (रूद्धोष्म ह्रास दर) को समझाता है। प्रवाह प्रक्रमों और रासायनिक क्रियाओं में भी इनके अनुप्रयोग काफी मनोरंजक है। तथापि निम्न प्रक्रमों पर विचार करें।
ऊष्मा सदैव गर्म पदार्थ से ठंडे पदार्थ की ओर प्रवाहित होती है लेकिन ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम यह स्पष्टीकरण देने में असमर्थ है कि ऊष्मा अपेक्षाकृत ठंडी वस्तु से गर्म वस्तु की ओर प्रवाहित क्यों नहीं हो सकती है। इसका अर्थ यह हुआ कि इस नियम से ऊष्मा प्रवाह की दिशा के बारे में कोई संकेत नहीं मिलता है।जब एक गोली लक्ष्य को बेधती है तो गोली की गतिज ऊर्जा ऊष्मा में रूपान्तरित हो जाती है। इस नियम से इस बात का स्पष्टीकरण नहीं होता कि निशाने पर गोली लगने से उत्पन्न ऊष्मा गोली की गतिज ऊर्जा में क्यों रूपान्तरित नहीं हो जाती है ताकि गोली उड़ कर दूर चली जाती। इसका अर्थ यह हुआ कि यह नियम उस परिस्थिति का ज्ञान देने में असमर्थ है जिसमें ऊष्मा कार्य में रूपान्तरित हो सकती है।
इसके अलावा इसकी एक और स्पष्ट सीमा यह है कि इस नियम से यह ज्ञान नहीं होता कि ऊष्मा किस सीमा तक कार्य में रूपान्तरित हो सकती है, साथ ही इस नियम से यह भी इंगित नहीं होता कि किस सीमा तक ऊष्मा कार्य में रूपान्तरित हो सकती है।
ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम
Second Law of Thermodynamics
यह कहता है कि ऐसा संभव नहीं और एक ही ताप की वस्तु से यांत्रिक ऊर्जा की प्राप्ति नहीं हो सकती। ऐसा करने के लिये एक निम्न तापीय पिंड (संघनित्र) की भी आवश्यकता होती है। किसी भी इंजन के लिये उच्च तापीय भट्ठी से प्राप ऊष्मा के एक अंश को निम्न तापीय पिंड को देना आवश्यक है। शेष अंश ही यांत्रिक कार्य में काम आ सकता है। समुद्र के पानी स ऊष्मा लेकर उससे जहाज चलाना इसलिये संभव नहीं कि वहाँ पर सर्वत्र समान ताप है और कोई भी निम्न तापीय वस्तु मौजूद नहीं।
इस नियम का बहुत महत्व है। इसके द्वारा ताप के परम पैमाने की संकल्पना की गई है। दूसरा नियम परमाणुओं की गति की अव्यवस्था (disorder) से संबंध रखता है। इस अव्यवस्थितता को मात्रात्मक रूप देने के लिये एंट्रॉपि (entropy) नामक एक नवीन भौतिक राशि की संकल्पना की गई है। उष्मागतिकी के दूसरे नियम का एक पहलू यह भी है। कि प्राकृतिक भौतिक क्रियाओं में एंट्रॉपी की सदा वृद्धि होती है। उसमें ह्रास कभी नहीं होता।
ऊष्मागतिकी के द्वितीय नियम के अनेक प्रक्कथन (Statements) हैं। तथापि आप ऊष्मागतिकी के दूसरे नियम के केल्विन प्लाँक (Kelvin Plank) तथा कलॉसियस (Classius) के प्रक्कथन के बारे में अध्ययन करेंगे।
केल्विन-प्लाँक प्रक्कथन
Kelvin-Planck statement
यह ऊष्मा इंजनों की क्षमताओं के बारे में अनुभव पर आधारित है। ऊष्मा इंजन के बारे में अगले परिच्छेद में विवेचना की गयी है। एक ऊष्मा इंजन में, कार्यकारी पदार्थ स्रोत (गर्म पदार्थ) से ऊष्मा लेता है और इसके कुछ अंश को कार्य में रूपान्तरित करने के पश्चात ऊष्मा के शेष भाग को सिंक (ठंडी वस्तु या वातावरण) को दे देता है। ऐसा कोई इंजन नहीं है जो सम्पूर्ण ऊष्मा को, बिना सिंक को कुछ ऊष्मा प्रदान किये, कार्य में बदल सकता है। इन प्रेक्षणों के आधार पर केल्विन व प्लाँक ने ऊष्मागतिकी के दूसरे नियम के बारे में यह कथन दिया।
किसी निकाय के लिये नियत ताप पर किसी स्रोत से ऊष्मा अवशोषित करके उसकी संपूर्ण मात्रा को कार्य में रूपान्तरित करना असंभव है।
क्लॉसियस द्वारा दिया गया ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम
Clausius’ second law of thermodynamics
यह रेफ्रीजरेटर के कार्य पर आधारित है। रेफ्रीजरेटर विपरीत दिशा में कार्य करने वाला ऊष्मा इंजन है। जब इस पर कार्य किया जाता है तो यह अपेक्षाकृत ठंडी वस्तु से अपेक्षाकृत गर्म वस्तु को ऊष्मा हस्तान्तरित कर देता है। यहाँ निकाय पर किये गये बाह्य कार्य की संकल्पना महत्वपूर्ण है। इस बाह्य कार्य को करने के लिये किसी बाह्य स्रोत द्वारा ऊर्जा आपूर्ति आवश्यक हैं इन तथ्यों के आधार पर क्लासियस ने ऊष्मागतिकी के दूसरे नियम के बारे में यह प्रक्कथन दिया।
किसी प्रक्रम में बाह्य कार्य किये बिना अपेक्षाकृत ठंडी वस्तु से ऊष्मा गर्म वस्तु में रूपांतरित करना असंभव है।
अतः ऊष्मागतिकी के दूसरे नियम की भूमिका प्रायोगिक रूप से उपयोगी जैसे ऊष्मा इंजन और रेफ्रीजरेटर में बेजोड़ है।
ऊष्मागतिकी के पहले नियम का संबंध द्रव्य और ऊर्जा के संरक्षण से है। इसके अनुसार, ऊर्जा का न तो सृजन हो सकता है और न ही यह नष्ट हो सकती है बल्कि यह एक स्वरूप से दूसरे स्वरूप में परिवर्तित हो सकती है। अधिकतर ऊर्जा का उपयोग सजीव जीवधारियों के उपापचय, गति तथा अन्य क्रियाकलापों में होता है।ऊष्मागतिकी के दूसरे नियम के अनुसार, प्रत्येक ऊर्जा रूपांतरण के दौरान उपयोगी ऊर्जा की कुछ मात्रा अनुपयोगी अपशिष्ट के रूप में निम्नीकृत हो जाती है।जीवों की कोशिकाओं को लगातार ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो मुख्यतः एडीनोसिन ट्राइफॉस्फेट के रूप में उपलब्ध होती है और उसी दौरान कुछ ऊर्जा अनुपयोगी ऊष्मा में बदल जाती है। चूँकि ऊष्मा ऊर्जा से कोई उपयोगी कार्य नहीं हो सकते इसलिये इस अवश्यंभावी ऊर्जा हानि की क्षतिपूर्ति के लिये जैविक तंत्र को बाहर से ऊर्जा की आपूर्ति करना आवश्यक होता है।यदि विश्व के समस्त लोग शाकाहारी हो जाएँ तो शैवाल अनेक खाद्य शृंखलाओं से गायब हो जाएंगे जिससे खाद्य जाल विकृत हो जाएगा और पारिस्थितिक संकट उत्पन्न हो जाएगा।
ऊष्मागतिकी के तीसरा नियम
Third Law of Thermodynamics
ऊष्मागतिकी के तीसरे नियम के अनुसार शून्य ताप पर किसी ऊष्मागतिक निकाय की एंट्रॉपी शून्य होती है। इसका अन्य रूप यह है कि किसी भी प्रयोग द्वारा शून्य परम ताप की प्राप्ति संभव नहीं। हाँ हम उसके अति निकट पहुँच सकते हैं, पर उस तक नहीं।